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मानवों की उत्पत्ति का विकास,डार्विन का सिद्धांत-Human Evolution Hindi | Gurugrah.in






मानवों की उत्पत्ति का विकास | Gurugrah.in

आख़िर कैसे हुई मानवों की उत्पत्ति (History of Human Evolution) –


वैज्ञानिक दृष्टि से मानव की उत्पत्ति (Human Evolution in Science) –

विज्ञान ने मानव जाति के आविष्कार को समझने के लिए कई प्रयास किये हैं जिसके सफल परिणाम भी प्राप्त हुए हैं। विज्ञान के अनुसार मानव का इतिहास समुंद्र से जुड़ा है। सबसे पहले पानी में रहने वाली प्रजातियों ने जन्म लिया जैसे मछली, पानी में रहने वाले कीटाणु आदि।


धीरे धीरे समय का चक्र बढ़ता रहा। जल एवं थल में रहने वाले जीव आये और अपना जीवन यापन करने लगे ये जीव थे जैसे मेंढ़क, केकड़ा आदि। समय बदलता रहा और प्रकृति अपना काम कर रही थी कभी बाढ़ तो कभी सूखा, जीवो की जन्म और मृत्यु हो रही थी।


इसी दौर में कई प्रजातियां विकसित हुई और कईंयों का नामो निशान खत्म हो गया है। यह क्रम ऐसे ही चलता रहा और डायनासोर, वानर, चिम्पैंजी, वनमानुष आये और इसके बाद हुआ दो पैर वाले मनुष्य का विकास।


वैज्ञानिक मान्यता के अनुसार बंदर ही मानव जाति के रचनाकर है। सोचने समझने की शक्ति से धीरे – धीरे बंदर जैसा प्राणी दो पैरों का इस्तेमाल करना सीख गया और पृथ्वी से जुड़े पेड़ों के फल, सब्जियाँ तोड़कर अपनी भूख को शांत करने लगा।


बंदर वाली बुद्धि का विकास होने लगा और यह एक मनुष्य का रूप लेने में सक्षम होने लगा और चार पैरों का उपयोग छोड़ दो पैरों की सहायता से चलने फिरने लगा। अब यह मानव शरीर के सभी अंगों का प्रयोग करने लगा था। पूँछ किसी इस्तेमाल में ना आने की वजह से खत्म हो गयी पर मानव शरीर की रीढ़ की हड्डी के अंतिम छोर पर उसके अवशेष अब भी पाये जाते हैं।


धर्म की दृष्टि से मनुष्य जाति का जन्म (Religion in Human Evolution) –

हिन्दू मान्यताओं के अनुसार मानव बंदरो का विकसित रूप नहीं है। पौराणिक ग्रंथो के अनुसार बंदर और मानव जाति की उत्पत्ति में भिन्नता है। इतिहास की तुलना में आज के इंसान के ढांचे में थोड़े बहुत बदलाव अवश्य आये हैं। जैसे लम्बाई, आयु, रंग रूप आदि लेकिन मानव जैसा प्राचीन काल में दिखता था वैसा ही आज भी दिखता है। जिस प्रकार पृथ्वी पर ओर जीवों की प्रजातियां मिलती हैं उसी प्रकार मानव जाति की भी कई प्रजातियां हैं जो आज भी विद्यमान हैं।


धर्म के अनुसार मानव संसार की रचना भगवान द्वारा की गयी है। इस संसार में जो इंसान सबसे पहले आया था। उसी ने मानव जाति को जन्म दिया था पर अब एक और पहेली सामने आती है कि वह पहला इंसान आखिर कौन था?


इस पहेली को भी हिन्दू धर्म अनुसार सुलझाया जा चूका है। हिन्दू धर्म के मुताबिक संसार में सबसे पहला जीवन लेने वाला महान शख़्स “मनु” था। जिसके आधार पर ही इस जाति का नाम मानव जाति पड़ा था।


कैसे आयी मानव जाती अस्तित्व मे (HOW HUMAN CAME INTO EXISTENCE) –

मानव क्रम विकास की प्रक्रिया से वजूद मे आया है, इस बात का साक्ष्य हमे मानव की उन प्रजातियों के जीवाश्मों से मिलता है जो अब लुप्त हो चुकी है। ब्रिटिश वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन ने सबसे पहले क्रम विकास के सिद्धांत के बारे मे बताया। चार्ल्स डार्विन ने अपनी पुस्तक ऑन दि ऑरिजिन ऑफ स्पीशीज मे बताया की मानवजाति बहुत साल पहले जानवरो से ही क्रमिक रूप से विकसित होकर अपने वर्तमान रूप मे आयी है।


मानव जाति का क्रम विकास (EVOLUTION OF HUMAN) –

मानव के विकास का क्रम करीब 360 से 240 लाख पहले शुरू हुआ। क्रम विकास को समझने के लिये प्राणियों के वर्गिकरण को भी समझना होगा। प्राणिशास्त्री प्राणियों का वर्गिकरण ऑर्डर, सबआर्डर, सुपर फैमिली, फैमिली, जीनस और स्पीशीज श्रेणियों मे करते है।


लगभग 360 लाख साल पहले एशिया तथा अफ्रीका मे स्तनपायी प्राणियों की प्राइमेट (नरवानर) नाम की श्रेणी का उदभव हुआ था। शुरुआती नरवानर पेड़ो जी पर जीवन बिताते थे। नर वानरो को दो सबऑर्डर प्रोसिमी और एंथ्रोपोइडिया मे बांटा जाता है। प्रोसिमी मे (आदिम प्राणी) और एंथ्रोपोइडिया मे (बंदर, वानर, मानव) आते है। एंथ्रोपोइडिया को तीन सुपर फैमिली (महा परिवार) मे बांटा जाता है।


इनमे दो सुपर फैमिली बंदरो की है। उसके बाद करीब 240 लाख साल पहले तीसरा महापरिवार होमिनाइड जिसमे वानर शामिल थे उत्पन्न हुआ। होमिनाइड से होमिनिड उपसमूह विकसित हुआ। होमिनिड जिस परिवार के सदस्य होते है उसका नाम है ‘होमिनिडेइ’। होमिनिडो को आगे जीनस शाखाओ मे बांटा जाता है। इन शाखाओ मे आस्ट्रेलोपिथिक्स और होमो आते है। आस्ट्रेलोपिथिक्स की दो प्रजातीया है आस्ट्रेलोपिथिक्स आफ्रिकेनस और आस्ट्रेलोपिथिक्स रोबस्टस।


मानव और उसके निकटतम पूर्वज “होमो” श्रेणी मे आते है, अपने मस्तिष्क के बड़े आकार के कारण ये आस्ट्रेलोपिथिक्स से भिन्न थे। वैज्ञानिको ने होमो को होमो हैबिलिस, होमो एरेक्टस और होमो सैपियंस नामक प्रजातियों मे बांटा है। मानव होमो सैपियंस प्रजाति का हिस्सा है। निएंडरथल्स शुरुआती होमो सैपियंस थे।


करीब पचास हजार साल पहले निएंडरथलो की आबादी घटने लगी और 34 हजार साल पहले यह प्रजाति लुप्त हो गयी। होमो सैपियंस सैपियंस के विकास के साथ मस्तिष्क का आकार बड़ा और विकसित हुआ। मानव ने अपने आपको सांस्कृतिक रूप से ढाला और इस प्रकार क्रम रूप से विकसित होकर मानव जाति अस्तित्व मे आई।


डार्विन का सिद्धांत मुख्य रूप से तीन बातो पर आधारित था।

1.विकिरक परिवर्तन (RADIANT VARIATION)

एक सामान्य जीव के विकास से विकसित जीवो मे परिवर्तन उत्पन्न होता है। इस परिवर्तन से इनके मध्य अंतर उत्पन्न होता है। इस प्रकार प्रत्येक जीव नए परिवर्तित रूपो को जन्म देता जाता है।


2. अनुकूलनशीलता (ADAPTABILITY)

नवीन परिवर्तित जीव विशेष वातावरण मे दूसरे जीवो की अपेक्षा जीवित रहने मे अधिक समर्थ है।


3. प्राकृतिक चयन (NATURAL SELECTION)

वातावरण से अनुकूलित अनेक जीवो के अनेक जैविक गुण स्थायी रहेंगे तथा अन्य जीव नष्ट हो जायेंगे या लुप्त हो जायेंगे.


भारत में मानव प्रजाति (Human Species in India):

भारतीय उपमहाद्वीप में शिवालिक पहाड़ी इलाके में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के अंतर्गत पोतवार के पठार में मानव खोपड़ियों के अत्यंत प्राचीन जीवाश्म मिले हैं । इन मानव खोपड़ियों को रामापिथेकस और शिवापिथेकस कहा गया ।


इनमें होमिनिड की लाक्षणिक विशेषताएँ तो है लेकिन ये वानरों का ही प्रतिनिधित्व करते हैं । रामापिथेकस स्त्री-खोपड़ी है, हालांकि दोनों एक ही वर्ग के हैं । इसी वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाला एक अन्य जीवाश्म, जो यूनान में प्राप्त हुआ है, लगभग एक करोड़ वर्ष पुराना माना गया है । यह रामापिथेकस और शिवापिथेकस के तिथि-निर्धारण में सहायक हो सकता है, अन्यथा इन खोपड़ियों को 22 लाख वर्ष पुराना माना जाता है ।


जो कुछ भी हो, इस बात का कोई प्रमाण नहीं मिलता है कि इस जाति का प्रसारण भारतीय उपमहाद्वीप के अन्य भागों में भी हुआ हो । ऐसा प्रतीत होता है कि शिवालिक पहाड़ी इलाके में मिले होमिनिड से भारतीय उपमहाद्वीप में मानव का उद्‌भव न हो सका और यह प्रजाति लुप्त हो गई ।


1982 ई॰ में मध्य प्रदेश के नर्मदा घाटी अंतर्गत हथनौरा नामक स्थल से होमिनिड की लगभग संप्रग खोपड़ी प्राप्त हुई है । इसे होमो इरेक्टस अथवा सीधे मानव की खोपड़ी बताया गया । लेकिन इसका शारीरिक परीक्षण करने के बाद अब इस आद्य होमो सेपीयन्स माना जाता है ।


अब तक होमो सपीयन्स के अवशेष भारतीय उपमहाद्वीप में कहीं से भी नहीं प्राप्त हुए हैं, हालाँकि श्रीलंका में होमो सेपीयन्स सेपीयन्स के जीवाश्म मिले हैं । यह जीवाश्म लगभग 34,000 वर्ष पूर्व का बताया जाता है ।


श्रीलंका में यह काल ऊपरी प्लाइस्टोसीन और प्रारंभिक होलीसीन काल के शिकारी और खाद्य संग्राहक जीवन का है । ऐसा लगता है कि आधुनिक मानव (होमो सेपीयन्स सेपीयन्स) इसी समय दक्षिण भारत में अफ्रीका से समुद्रतट होते हुए पहुँचा । यह घटना प्राय: 35,000 वर्ष पूर्व हुई ।


मानव प्रजाति के अफ्रीकी पूर्वज (African Ancestor of Human Species):

पृथ्वी चार अरब साठ करोड़ वर्षों से अधिक पुरानी है । इसकी परत के विकास से चार अवस्थाएँ प्रकट होती हैं । चौथी अवस्था चातुर्थिकी (क्वाटर्नरी) कहलाती है, जिसके दो भाग हैं, अतिनूतन (प्लाइस्टोसीन) और अद्यतन (होलोसीन) । पहला 20 लाख ई॰ पू॰ से 12,000 ई॰ पू॰ के बीच था और दूसरा लगभग 12,000 ई॰ पू॰ से शुरू होकर आज तक जारी है ।


पृथ्वी पर जीवोत्पत्ति लगभग तीन अरब पचास करोड़ वर्ष पूर्व हुई । करोड़ों वर्षों तक जीवन पौधों और पशुओं तक सीमित रहा । मानव धरती पर पूर्व-प्लाइस्टोसीन काल और प्लाइस्टोसीन काल के आरंभ में उत्पन्न हुआ । लगभग साठ लाख वर्ष पूर्व मानवसम (होमिनिड) का दक्षिणी और पूर्वी अफ्रीका में आविर्भाव हुआ ।


आदिमानव, जो बंदरों से बहुत भिन्न नहीं थे, लगभग तीन करोड़ वर्ष पूर्व पृथ्वी पर प्रकट हुए । मानव के उद्‌भव में ऑस्ट्रालॉपिथेकस का आविर्भाव सबसे महत्वपूर्ण घटना है । ऑस्ट्रालॉपिथेकस लैटिन शब्द है जिसका अर्थ है दक्षिणी वानर । यह नर वानर था और इस प्रजाति में वानर और मनुष्य दोनों के लक्षण विद्यमान थे ।


ऑस्ट्रालॉपिथेकस का उद्‌भव लगभग 55 लाख वर्ष पूर्व से लेकर 15 लाख वर्ष पूर्व हुआ । यह दो पैरों वाला और उभरे पेट वाला था । इसका मस्तिष्क बहुत छोटे आकार (लगभग 400 cubic centimeter) का था । ऑस्ट्रालॉपिथेकस में कुछ ऐसे लक्षण विद्यमान थे जो ‘होमो’ अथवा मानव में पाए जाते हैं ।


ऑस्ट्रालॉपिथेकस सबसे अंतिम पूर्वमानव (होमिनिड) था । अत: इसे प्रोटो-मानव अथवा आद्यमानव भी कहते हैं ।

20 लाख से 15 लाख वर्ष पूर्व पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका में प्रथम मानव कहे जाने वाले मानव होमो हैविलिस का प्रादुर्भाव हुआ । होमो हैविलिस का अर्थ है हाथवाला मानव अथवा कारीगर मानव । इस प्रथम वास्तविक मानव ने पत्थरों को टुकड़ों में तोड़कर और उन्हें तराशकर उनका औज़ार के रूप में इस्तेमाल किया ।


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By Sandeep Kumar | October 17, 2022, | Writer at Gurugrah_Blogs.

 

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